पुनर्जीवित गौरी शंकर सिंह, छत्तरपुर : वट सावित्री व्रत पर गुरुवार को छत्तरपुर प्रखंड के ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में सुहागिनों ने वट वृक्ष की पूजा-अर्चना कर पति के दीर्घायु होने की कामना की। बरगद के पेड़ के नीचे सैकड़ों सुहागिन महिलाएं सज-धजकर विधिवत पूजा अर्चना कर वृक्ष में कच्चे धागे से फेरे लगाया। उमस भरी गर्मी पर सुहागिनों की आस्था भारी पड़ी। नव विवाहिताओं में वट सावित्री पूजा को लेकर खास उत्साह देखने को मिला। वट वृक्ष को आम, लीची, मौसमी फल अर्पित करने, कच्चे सूत से बांधने व हाथ पंखे से ठंडक पहुंचाने के बाद महिलाओं ने आस्था के साथ इसकी परिक्रमा की। पूजा के बाद वट सावित्री कथा भी सुनी। सुहागिन महिलाओं ने पूजा की थाली सजाकर वट वृक्ष की 12 बार परिक्रमा की और फल-फूल चढ़ाकर सुख-समृद्धि और पति की लंबी आयु की कामना की। सुहागिन ने खोइछा भराई का भी रस्म पूरा किया।
क्यों मनाते हैं वट सावित्री व्रत
पंडित बसंत मिश्रा बताते हैं कि वटवृक्ष के नीचे ही सावित्री ने अपने पति को पुनर्जीवित किया था। तब से ये व्रत ‘वट सावित्री’ के नाम से भी जाना जाता है। वट सावित्री के व्रत पर सुहागिन महिलाएं भगवान शिव, माता पार्वती, भगवान यमराज, के साथ साथ सावित्री और सत्यवान की पूजा करती हैं। बरगद के वृक्ष पर सूत के धागा लपेटकर अंखड सौभाग्य की कामना करती हैं। इसके साथ सत्यवान और सावित्री की कथा जुड़ी हुई है, जब सावित्री ने अपने संकल्प और श्रद्धा से, यमराज से अपने पति सत्यवान को जीवन दान दिलवाया था। इसलिए इस दिन महिलाएं भी संकल्प के साथ अपने पति की आयु और प्राण रक्षा के लिए इस दिन व्रत और संकल्प लेती हैं। इस व्रत को करने से सुखद और संपन्न दाम्पत्य का वरदान मिलता है। वटसावित्री का व्रत सम्पूर्ण परिवार को एक सूत्र में बांधे भी रखता है।
Author: Shahid Alam
Editor