गौरीशंकर सिंह, छत्तरपुर : व्यवस्था की व्यथा सुनाते सुनाते उनके अरमान अब झुलस गए हैं। व्यवस्था के रहनुमा चौखट पर आरजू मिन्नत करते करते पांव जहां थक गए हैं, वहीं न्याय की ओर टकटकी लगाई आंखें आस छोड़ पथरा गई है। 20 वर्ष पहले जमीन का कागज तो मिला, लेकिन जमीन नहीं मिली। यह दर्द बटाने जलाशय योजना से विस्थापित उन गरीबों की है, जिन्हे बसने के लिए सरकारी रहमों-करम पर जमीन तो मिली पर उस जमीन से वे आज भी बेदखल हैं। परचा में जमीन रहने व बसने के लिये विस्थापितों को जरूर मिल गई, पर जमीन पर उनकी जमीर नहीं दिखती है। बटाने जलाशय योजना से प्रभावित विस्थापितों को बसाने के लिए ग्राम नावाडीह थाना नं.-197 में विशेष भू-अर्जन कार्यालय मेदिनीनगर द्वारा वर्ष 1985 में करीब 28 एकड़ भूमि अर्जित की गई थी। अर्जन की सभी प्रक्रियाओं को पूरा करते हुए अर्जित भूमि का मुआवजा भुगतान भी भूस्वामियों को अगस्त 2000 में कर दी गई थी। इसके बाद विस्थापितों को पुनर्वासित करने के लिए उक्त अर्जित भूमि पुनर्वास पदाधिकारी, उतरी कोयल परियोजना, मेदिनीनगर को हस्तांतरित कर दी गई। पुनर्वास कार्यालय ने उक्त अर्जित भूमि का नक्शे पर प्लॉटिंग कर अगस्त 2002 में 44 विस्थापित परिवार को भूखंड का बासगीत परचा दिया था। परंतु मजे की बात यह है कि पुनर्वास कार्यालय की उदासीनता व लालफीताशाही के कारण आज 20 वर्ष बाद भी विस्थापित परिवारों को उक्त आबंटित भूखंड का दखल कब्जा नहीं दिलाया गया है। कालांतर में जमीन मिलने की आस संजोए 16 विस्थापित परिवार के मुखिया काल के गाल में समा चुके है। सभी 44 विस्थापित गरीब हाथ में परचा लिए दर दर भटक रहे हैं। इनकी हालात खानाबदोश की हो गई है। ये परिवार के साथ प्रकृति के हर मौसम के थपेड़ों को सहने को विवश व मजबूर हैं।
परचा मिलने के 20 वर्ष बाद भी नहीं मिला बटाने डैम से विस्थापितों को बसने के लिए जमीन
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