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पलामू के वीर शहीद नीलांबर-पीतांबर ने देश की आजादी के लिए अग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह का बिगुल फूंक कर महज 35 साल की उम्र दी थी प्राणों की आहुति

शाहिद आलम (चीफ एडिटर, आजाद दर्पण) : आज हम देश का 75वां गणतंत्र दिवस मना रहे हैं। देश को काफी संघर्षों के बाद आजादी मिली, उसके बाद 26 जनवरी 1950 को नए संविधान के लागू होने के साथ ही हमारा भारत गणतंत्र घोषित हुआ। देश की आजादी के लिए संघर्ष में पलामू के योगदान को कदापि भुलाया नहीं जा सकता। पलामू के कई योद्धाओं ने समय-समय पर देश की आजादी की लड़ाई में हिसा लिया। आजादी की लड़ाई में पलामू के दो महान स्वतंत्रता सेनानी वीर शहीद नीलांबर-पीतांबर भाइयों का भी महत्वपूर्ण योगदान है। उन्होंने 1857 ई की प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह करने में अहम भूमिका निभायी। नीलांबर-पीतांबर शाही भोगता का जन्म 10 जनवरी 1823 ई को वर्तमान के गढ़वा जिले के भंडरिया स्थित चेमू सनेया गांव में हुआ था। इन सहोदर भाईयों के पिता का नाम चेमू सिंह भोगता था।

भोगता-खरवार व चेरो जागीरदारों को संगठित कर अंग्रेजी कैंपों पर किया आक्रमण

अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई के लिए दोनों भाइयों ने पहले एक मजबूत संगठन खड़ा किया। उन्होंने इसके लिए भोगता तथा खरवार समुदाय के साथ-साथ चेरो जागीरदारों एकजुट कर मजबूत संगठन खड़ा किया। जब एक शक्तिशाली संगठन खड़ा हो गया, तब 21 अक्तूबर 1857 को स्वतंत्रता सेनानियों ने दोनों भाइयों के नेतृत्व में चैनपुर, शाहपुर तथा लेस्लीगंज स्थित अंग्रेजों के कैंप पर हमला कर दिया, जिसमें वे काफी हद तक सफल रहे।

विद्रोह को दबाने के लिए अंग्रेजी हुकूमत ने भेजी सैन्य टुकड़ी

इस विद्रोह को कुचलने के लिए अंग्रेजों द्वारा मेजर कोर्टर के नेतृत्व में एक सैन्य टुकड़ी को भेजा गया। बाद में अंग्रेजी सैन्य अधिकारी ग्राहम को भी इस टुकड़ी का सहयोग के लिए भेज दिया गया। इधर दोनों भाई अंग्रेजों के विरुद्ध लोगों को एकजुट करने में जुटे थे। जैसे ही इसकी भनक अंग्रेजों को लगी नीलांबर पीतांबर के विद्रोह को दबाने के लिए जॉन डाल्टन ने एक बड़ी सेना के साथ 27 जनवरी 1858 में पलामू किले पर हमला कर दिया। हालांकि इस हमले में पलामू किले में छुपे निलांबर-पितांबर व उनके साथी किसी तरह वहां से भागने में सफल रहे। हमले के दूसरे दिन जॉन डाल्टन ने संदेह का आधार पर मनिका के निकट से टिकैत उनारस सिंह और उनके दीवान से शेख भिखारी को विद्रोह में शामिल होने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया।

10 दिन तक घेरने के बाद भी नहीं पकड़े गए दोंनो भाई व उनके साथी 

जॉन डाल्टन ने नीलांबर पितांबर को पकड़ने के लिए 13 फरवरी 1858 को अपने सैनिकों के साथ पहली बार नीलांबर-पीतांबर के गांव चेमू सनेया पहुंचा और उसने चेमू व सनेया दोनों गावों को घेरकर मोर्चाबंदी कर दी। हालांकि इस दौरान अंग्रेजी सेना को काफी विरोध झेलना पड़ा था। नीलांबर-पीतांबर व उनके साथियों को पकड़ने के लिए जॉन डाल्टन अपने अंग्रेजी सेना के साथ कोयल नदी के किनारे 10 दिनों तक डेरा डाला रहा। लेकिन उसके बावजूद दोनों भाई और उनके साथियों को पकड़ने में वह नाकामयाब रहा।

नुकसान से गुस्साये अंग्रेजों ने जलाया चेमू व सनेया गांव

इस दौरान नीलांबर-पीतांबर व उनके साथियों का राशन पानी भी खत्म हो गया था। ऐसे में उन्हें पहाड़ियों की ओर भागकर शरण लेनी पड़ी। 10 दिनों तक लगातार अभियान के दौरान अंग्रेजों को इस बार काफी नुकसान हुआ था। कई सैनिक मारे गए थे, जबकि दर्जनों सैनिक घायल भी थे। इससे गुस्साये अंग्रेजों ने डाल्टन के लौटने के पहले 22 फरवरी को चेमू गांव के घरों में तोड़-फोड़ करते हुए आग लगा कर गांव को पूरी तरह से नष्ट कर दिया गया। इसके दूसरे दिन 23 फरवरी को इसी तरह सनेया गांव को भी नष्ट कर दिया गया।

महज 35 साल की उम्र में दी गई दोनों भाईयों को  फांसी 

अंग्रेजी सरकार व सेना की दोनों भाइयों को पकड़ने की तमाम कोशिश विफल साबित हो रही थी। परंतु एक भोज में शामिल होने के दौरान अंग्रेजी सेना ने दोनों भाइयों को पकड़ लिया। अग्रेजी कोर्ट में दोनों भाईयों के विरुद्ध खिलाफ एक संक्षिप्त मुकदमा चलाकर उन्हें फांसी की सजा सुना दी गई। महज 35 साल की उम्र में 28 मार्च 1859 को उन्हें फांसी दी गयी। बाद में दोनों भाइयों की संपत्ति को भी अंग्रेजी हुकूमत ने जब्त कर लिया। इस तरह महज 35 साल की उम्र में दोनों भाइयों ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह का बिगुल फूंक कर अपने प्राण न्योछावर कर दिए।

Shahid Alam
Author: Shahid Alam

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