आजाद दर्पण डेस्क : झारखंड के राज्यपाल ने प्रदेश के हेमंत सोरेन सरकार को एक बार फिर झटका दिया है। राजभवन की ओर से खतियान आधारित स्थानीय नीति विधेयक को एक बार फिर से लौटा दिया गया है। यह विधेयक राज्य सरकार द्वारा स्थानीय लोगों को लाभ देने के उद्देश्य से लाई गई थी। राज्यपाल ने कहा है कि राज्य सरकार चाहे तो स्थानीय के लिए तृतीय एवं चतुर्थ श्रेणी के पद पांच वर्ष के लिए आरक्षित कर सकती है। उल्लेखनीय है कि पूर्व राज्यपाल रमेश बैस ने भी इस विधेयक को संविधान सम्मत नहीं होने का हवाला देते हुए लौटा दिया था।
अटार्नी जनरल के सलाह के बाद लौटाया गया विधेयक
इस संबंध में मिली जानकारी के अनुसार राज्यपाल सी पी राधाकृष्णन् ने 1932 के खतियान आधारित स्थानीय नीति “झारखंड स्थानीय व्यक्तियों के परिणामी सामाजिक, सामाजिक सांस्कृतिक और अन्य लाभों का विस्तार करने के लिए विधेयक-2022” को एक बार फिर से राज्य सरकार को वापस लौटा दिया है। राज्यपाल ने अटॉर्नी जनरल से परामर्श लेने के बाद इसका हवाला देते हुए राज्य सरकार को इस विधेयक पर पुनर्विचार करने के लिए कहा है।
जानें, अटॉर्नी जनरल ने अपने सुझाव में क्या कहा था
अटॉर्नी जनरल ने अपने सुझाव में कहा था कि विधेयक में स्थानीय व्यक्ति शब्द की परिभाषा लोगों की आकांक्षाओं के अनुकूल है।यह स्थानीय परिस्थितियों के लोकाचार और संस्कृति के साथ फिट बैठती है, लेकिन लगता है कि विधेयक की धारा संविधान के अनुच्छेद-14 और अनुच्छेद-16 (2) का उल्लंघन कर सकती है। हालांकि, पैरा- 4 में मेरी राय पर अमल कर इसे बचाया जा सकता है। अटॉर्नी जनरल ने कहा कि इस विधेयक के मुताबिक राज्य सरकार की थर्ड व फोर्थ ग्रेड की नौकरियां केवल स्थानीय व्यक्तियों के लिए आरक्षित होंगी। स्थानीय के अलावा अन्य लोगों की नियुक्तियों पर पूरी तरह से प्रतिबंध रहेगा। अटॉर्नी जनरल ने अपनी राय व्यक्त की है कि थर्ड और फोर्थ ग्रेड की नौकरियों के लिए आवेदन करने से अन्य लोगों को वंचित नहीं किया जा सकता। इसके बजाय सुरक्षित तरीका यह है कि सभी चीजों में स्थानीय व्यक्तियों को सामान प्राथमिकता दी जाए। हालांकि फोर्थ ग्रेड के लिए स्थानीय व्यक्ति पर विचार किया जा सकता है।

Author: Shahid Alam
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